balendra sharan pandey 

हाल ही में कार्य की अधिकता के चलते दो उच्च शिक्षित महिलाओं की मौत चर्चा का विषय बनी हुई है इनमें पुणे की अर्नेस्ट यंग कंपनी की 26 वर्षी का अन्ना सेबेस्टियन पैराफिन ने जहां वर्क प्रेशर के चलते आत्महत्या कर ली वही लखनऊ में एचडीएफसी बैंक की उच्च महिला अधिकारी एडिशनल डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट 45 वर्षीय सादाब फातिमा कार्य की अधिकता के चलते हिरदाघाट से दुनिया छोड़कर चली गई। आंकड़े बताते हैं कि लॉन्ग वर्किंग अवर्स अधिकतर जीवन पर भारी पड़े हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2 लाख से ज्यादा भारतीयों की मौत हर साल कार्य की अधिकता के चलते होती है। 2019 की रिपोर्ट देखें तो पता चलता है कि मुंबई दुनिया का सबसे ज्यादा काम करने वाला शहर था। वही दिल्ली इस मामले में चौथे स्थान पर था पुलिस स्टाफ हाल ही में ए बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि दुनिया में सबसे अधिक कार्य करने वालों में भारतीय दूसरे स्थान पर है। भारत में कर्मचारी ऑस्टिन 1 सप्ताह में 49 घंटे से ज्यादा काम करते हैं फूल स्टाफ भारत में निजी सेक्टर में कर्मचारियों के शोषण की यह एक बानगी नहीं है। 2018 में किए गए सर्वे के मुताबिक निजी क्षेत्र में कार्य कर्मचारियों को सबसे ज्यादा छुट्टियों से वंचित किया गया है इसका सीधा अर्थ है कि जो छुट्टियां कर्मचारियों को मिलती हैं कार्य की अधिकता के चलते वह भी नहीं ले पाते। स्वास्थ्य के नजरिए से देखें तो 2021 में किए गए विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक सप्ताह में 55 घंटे या उससे अधिक काम करना 35 से 40 घंटे काम करने की तुलना में बहुत खतरनाक है इससे समय से पहले मृत्यु का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक भारत में 51.4 फ़ीसदी कर्मचारी हर सप्ताह 49 घंटे या उससे अधिक कार्य करते हैं। भारत में साप्ताहिक औसत की बात करें तो यहां 46.7 घंटे हर भारतीय कर्मचारी करता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक दुनिया भर में लंबे काम के घंटे के चलते तनाव और निराशा की वजह से 2000 2023 में 2083 आत्महत्या हुई है अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक संचार सेक्टर में सबसे अधिक कार्य की अधिकता है यहां 57.5 घंटे कार्य होता है निजी क्षेत्र में 20 सेक्टर ऐसे हैं जहां हर सप्ताह 50 घंटे कर्मचारी कार्य करते है। भारत की बात करें तो यहां युवा वर्ग 20 वर्ष की उम्र में जहां 58 घंटे कार्य करता है वही 50 साल की उम्र में कर्मचारी औसतन 53 घंटे कार्य करते हैं जो इंटरनेशनल लेबर मैंडेट से 48 घंटे से कहीं अधिक है। वास्तव में काम के घंटे में बढ़ोतरी कर्मचारी के लिए लगातार जानलेवा साबित होती आई है कार्य के घंटे में बढ़ोतरी का कर्मचारी के समग्र स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। इसके चलते निजी जीवन और खुद के लिए व्यक्ति समय नहीं निकल पाता जिससे अकेलापन निराश और तनाव जन्म लेते हैं जो अंत में जानलेवा साबित हो रहे हैं इसके अतिरिक्त लॉन्ग वर्किंग अवर्स के चलते व्यक्ति कई अन्य बीमारियों का भी शिकार हो रहा है। अध्ययन बताते हैं कि 40 घंटे से अधिक कार्य करने वाले श्रमिकों को मनोवैज्ञानिक तनाव बढ़ता है। स्वास्थ्य को लेकर किए गए अध्ययनों पर गौर करें तो पता चलता है कि कार्य की अधिकता के चलते सर दर्द साल हृदय घास से होने वाली मोटो की संख्या में यफ हो रहा है साथ ही 52 घंटे कार्य करने वालों को टैप टू डायबिटीज का खतरा 95% अधिक बढ़ा है। हाल ही में हुई दो उच्च शिक्षित महिलाओं की मौत यह बताता है कि वर्किंग अवर्स किस तरह से जानलेवा साबित हो रहे हैं पहले केस में जहां अन्ना ने कर के दबाव से छुटकारा पाने के लिए अपने जीवन लीला समाप्त कर ली वहीं दूसरे मामले में फातिमा को कार्य की चिंता के चलते हृदय घाट का सामना करना पड़ा इन दोनों म्यूट ने देश के नीति निर्धारकों को एक बार पुनः कॉरपोरेट कल्चर और लांग वर्किंग अवर्स को की समीक्षा करने पर मजबूर किया है। वास्तव में निजी सेक्टर में कर्मचारियों का शोषण नई बात नहीं है लेकिन जब वह जानलेवा बन जाए तो इस पर सुधार की मांग उठना लाजिमी है। खास तौर से जब हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में रहने का गर्भ करते हैं तो इस बात पर सोचना जरूरी है की कम से कम कार्य करना जानलेवा ना साबित हो। वर्तमान में हुई दो महिला कर्मचारियों की मौत से राजनेता से लेकर आम जनता तक यह मार्ग उठने लगी है की निजी क्षेत्र को लेकर नीति निर्धारक और जिम्मेदार आगे आए और कर्मचारियों के हितों के लिए बनाए गए श्रम कानून की समीक्षा करें। वास्तव में निजी क्षेत्र में नौकरी करना व्यक्ति के लिए अब आसान नहीं रहा है। ज्यादा मुनाफे की लालच में नियोक्ता कर्मचारियों के लिए असंभव सा प्रतीक होने वाला टारगेट फिक्स कर रहे हैं जिसे पूरा करने में नाकाम होने पर न्यूनतम वेतन तक रोका जा रहा है। जिसके चलते नौकरी पैसा परिवार वाला आम नागरिक आर्थिक तंगी के दौर से गुजरने पर मजबूर है। कई बार नव नियुक्त कर्मचारी दबाव नहीं झेल पा रहे हैं उनमें संघर्ष और धैर्य की क्षमता घटती जा रही है जिसके कारण वह आत्महत्या करने पर विवश हो रहा है। सही मायने में देखा जाए तो खान-पान से लेकर व्यक्ति की जीवन शैली में काफी हद तक बदलाव हुआ है युवा वर्ग में दबाव सहने की क्षमता दिन प्रतिदिन घटती जा रही है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि कार्य की अधिकता और वर्किंग अवर्स में कमी लाई ताकि व्यक्ति नौकरी करते हुए आसानी से अपना परिवार का भरण पोषण करते हुए जीवन यापन कर सके। युवा कर्मचारियों को कार्य की अधिकता से बचाने के लिए सरकार तथा निजी सेक्टर मिलकर ध्यान योग व मानसिक सुकून देने वाले कार्यक्रमों की पहल कर सकते हैं। इन पहलों का कर्मचारियों पर सकारात्मक असर पड़ेगा जिससे नौकरी मौत के नजदीक नहीं बल्कि जीवन को बेहतर बनाने का जरिया बनी रहेगी।