balendra sharan pandey

  साल 2022 हमें कई तरह की सीख दे गया है। पिछला साल ग्लोबल स्टॉर और महान फुटबॉलर लियोनल मेसी के लिए भी यादगार रहा, जब दुनिया ने मेसी के स्वप्न को मूर्त रूप में देखा और अर्जेंटीना 38 साल बाद फीफा विश्व कप चैंपियन बना। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि अपने कॅरियर के आखिरी पड़ाव में चहुँ ओर से आलोचना और हार का घूंट पीने के बाद लियोनल मेसी निष्ठा की बुनियाद पर महानता और करिश्माई व्यक्तित्व का ऐसा महल खड़ा करेंगे, जिसके आसपास फीफा विश्वकप इतिहास में महान पेल और डिएगो मैराडोना भी नहीं पहुंच पाये। आज मेसी के आलोचक भी यह कहते नहीं थकते कि चेहरे पर गंभीरता, निर्दोष मुस्कराहट, निश्छल नजरें और खेल में जो संगीत जैसी लय अर्जित किए हो वह मेसी ही हो सकता है। निष्ठा फिर चाहे वह ईश्वर के प्रति हो, अपने टीम के खिलाड़ियों के प्रति हो, देश के प्रति हो, क्लब के प्रति या फिर कुटुम्ब और दुनिया के प्रति। मेसी का जीवन बताता है कि उन्होंने जीवन में निष्ठा के बल पर फुटबॉल में महानता का चरित्र गढ़ा है। फीफा विश्वकप 2022 का पहला मैच सउदी अरब से हारने के बाद मेसी की टीम ने जबरदस्त पलटवार किया था। दूसरे मैच में जीत के बाद मेसी ने कहा था, हमारे लिए विश्वकप की शुरुआत अब हुई है और विश्वकप जीतकर ही समापन होगा। वाकई में 35 साल की उम्र में मेसी जैसा खिलाड़ी सिर्फ निष्ठा के दम पर भी ऐसा कह सकता था और उन्होंने यह कर के भी दिखाया। मेसी पर अपने देश को खिताब न दिला पाने के आरोप भी लगते रहे, लेकिन पिछले दो सालों संन्यास के बाद वापसी करते हुए मेसी ने पहले अर्जेंटीना को कोपा अमेरिका चैंपियन बनाया और फिर विश्व विजेता बनकर दुनिया को एक नई सीख दी कि यदि निष्ठावान रहते हुए कर्म किया जाए तो हार के आगे जीत ही मिलेगी, भले ही इसमें देर-सबेर हो। मेसी का मर्म भी शायद यही है क्योंकि जिस तरह से उन्हें प्रशंसक पूजते हैं और दुनिया सलाम करती है वह बताता है कि मेसी सिर्फ एक बेहतर खिलाड़ी ही नहीं मुकम्मल इंसान भी हैं। मेसी को लेकर अर्जेंटीना की एक कहावत है कि पके आम की तरह हैं लियोनल मेसी, उसे कहीं से खाओ मीठा ही होगा। मेसी का आभामंडल बताता है कि कैसे वे एक निष्ठावान प्रतिभा के धनी हैं। वास्तव में खुद पर भरोसा करने वाला व्यक्ति ही दुनिया का भरोसा जीत सकता है, क्योंकि निष्ठा हमेशा व्यक्ति को बेहतरी के मार्ग पर ले जाती है। फीफा विश्वकप 2022 में मेसी का प्रदर्शन इस बात का प्रमाण है। विश्वकप के दौरान मेसी ने ना केवल नाकआउट के प्रत्येक मैच में गोल का रिकॉर्ड बनाया, बल्कि यह साबित किया कि अर्जेंटीना और दुनिया के प्रति उनकी निष्ठा ही उन्हें चैंपियन की तरह खेलने के लिए प्रेरित किया। आज मेसी निष्ठा के दम पर भव्यता और वैभव के उस मुकाम पर हैं, जहां पहुंचना हर एक खिलाड़ी ही नहीं इंसान का सपना होता है, लेकिन पहुंच वहीं सकते हैं, जिन्हें मेसी का मूल पता हो। मेसी की किसी से तुलना करने का मतलब फुटबाल के देवता नीचे खींच लेना है। मेसी ईमानदार, निष्ठावान, सहज, सरल जीवन का पर्याय हैं। निष्ठा लियोनल मेसी के स्वभाव में है। मेसी ने अपना करियर बार्सिलोना से शुरू किया था। इज्जत, शोहरत, दौलत सब कुछ उन्होंने बार्सिलोना में रहते अर्जित किया। दुनिया जानती है कि मेसी बार्सिलोना से ही रिटायरमेंट चाहते थे और जब उन्हें बार्सिलोना छोड़ने के लिए मजबूर किया गया तो उनकी आंखों में आंसू थे। यह उनकी बार्सिलोना के प्रति निष्ठा का प्रमाण था। गौतरलब है कि मेसी अर्जेंटीना के रहने वाले थे, लेकिन स्पेन ने जब उन्हें अपनी टीम से खेलने का ऑफर दिया तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया। यह मेसी की देश के प्रति निष्ठा दर्शाता है कि उन्होंने चार विश्वकप खेलते हुए हर बार आलोचना का जहर पिया, लेकिन अर्जेंटीना को पहले कोपा अमेरिका और फिर विश्व चैंपियन बनाया। गौरतलब है कि मेसी का जन्म रोजारिया में हुआ था। मेसी रिटायरमेंट के बाद वहीं जाकर रहना चाहते हैं, यह उनका जन्मभूमि के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। इतना ही नहीं अपने वैवाहिक जीवन में अंतरराष्ट्रीय पर्सनैलिटी बन चुके लियोनल मेसी आज भी अपनी पत्नी के प्रति निष्ठावान हैं। आज के जमाने जब सुपर फुटबॉलरों के तलाक और दूसरी शादी की खबरें आती हैं। मेसी के लिए बीते कई वर्षों से उनकी पत्नी अंतोनेया पहला और आखिरी प्यार हैं। अंतोनेया मेसी के बचपन का प्यार हैं। मेसी के तीन बेटे हैं और यह सुपर सितारा जब दुनिया की नजर से ओझल होता है तो एक पिता की जिम्मेदारी निष्ठावान नजरिए से निभाता है। मेसी का व्यक्तित्व बताता है कि एक निष्ठावान इंसान सिर्फ फुटबाल में ही नहीं जीवन में भी चैंपियन बन सकता है। हमारा सनातन धर्म भी यही कहता है कि निष्ठा बड़ी प्रबल है। भगवान के प्रति पांडव की निष्ठा ही थी जो उन्हें अजय, अमर भीष्म, द्रोण और कर्ण जैसे महारथी के विरुद्ध ना केवल कुरुक्षेत्र में युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें पराजित कर धर्म की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। यह अपने देश और स्वयं के प्रति निष्ठा ही थी जिसके बल पर फीफा विश्वकप फाइनल में मेसी का खेल देखकर हर कोई दंग था, जब पूर्व विश्व चैंपियन फ्रांस के रफ्तार के सरताज किलियाने एमबापे भी उनके समक्ष घूंटने टेकने पर विवश नजर आए। इस मैच में दुनिया ने देखा कि कैसे मेसी की निष्ठा और अनुभव एमबापे की रफ्तार और युवा जोश पर भारी पड़ा। कौन जानता था कि 2014 में फीफा विश्वकप फाइनल हारने वाले मेसी जो उस समय गोल्डन बॉल ग्रहण करते समय उदासी और आंसुओं में डूबा था, करियर के आखिरी पड़ाव 2022 में उगते सूरज और गरिमा से भरे देवता की भांंति ना केवल फीफा विश्वकप में गोल्डन बॉल वरण करेगा, बल्कि अपने देश को विश्व-विजयी बना देगा। गौरतलब है कि 2014 फीफा विश्वकप के फाइनल में एंजुरी टाइम में जर्मनी के हाथों मिली अर्जेंटीना की हार के बाद मेसी काफी दुखी हुए और उन्होंने फुटबॉल से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी। हालांकि ज्यादा दिन तक वे फुटबॉल से दूर नहीं रह पाये। फुटबॉल और ईश्वर के प्रति उनकी निष्ठा ने एक बार फिर उन्हें मैदान में खींच लाई और इस बार उन्होंने अपने खेल से आलोचकों को भी करारा जवाब दिया। दुनिया जानती है कि मेसी खेल की संतान हैं, अंहकार की नहीं। जब भी गोल दागते हैं ईश्वर और प्रशंसकों का धन्यवाद देना नहीं भूलते। वास्तव में मेसी का मर्म यही है कि निष्ठा है तो मुमकिन है। मेसी हमें बताते हैं कि निष्ठावान रहते हुए अपना कर्म, धैर्य और पंसद से करते चले जाने पर भले ही देर से मिले पर सफलता मिलती है। ईश्वर और कर्मों के प्रति निष्ठा का प्रमाण है कि आज मेसी महान हैं। हम सबको मेसी का जीवन निष्ठावान रहने की सीख देता है। हमे जीवन के उतार-चढ़ाव में भले ही कितनी परेशानियां और आलोचना झेलनी पड़े, लेकिन सदा धैर्य धारण करते हुए अपने लक्ष्य और ईश्वर के निष्ठावान बने रहे। प्रतिद्वंद्वी कितना भी प्रबल हो, ईश्वर आपके साथ ही रहेगा और जहां भगवान है वहां भाग्य है, जहां भाग्य है वहीं विजय है। निष्ठावान व्यक्ति ही संसार में अद्भुत और अकल्पनीय कार्य कर सकते हैं। यही सनातन धर्म का सार है और यही मैसी की जीत का मर्म।