ऊर्जा को लेकर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े देश
बालेन्द्र पाण्डेय
रूस-यूक्रेन युद्ध से सरकार को सबक लेते हुए ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा देना चाहिए। क्योंकि मौजूदा हालात में देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था पर सबसे अधिक ईंधन की वैश्विक कीमतों का जोखिम बना हुआ है। हालांकि सरकान ने बजट में हरित हाइड्रोजन नीति लाकर स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को लेकर रोडमैप तैयार किया है, लेकिन महंगा ईंधन होने के चलते इसके जल्द मूर्त रूप लेने में विलंब हो सकता है। साथ ही सौर ऊर्जा उत्पादन तो बढ़ा है, लेकिन यह अपर्याप्त है। आने वाले दिनों में रूस-यूक्रेन युद्ध से अर्थव्यवस्था की विकास दर प्रभावित हो सकती है, वहीं महंगाई में तेजी संभव है। साथ ही डालर के मुकाबले कमजोर होता रुपया यह बताता है कि हमें आयातित ऊर्जा के लिए अधिक विदेशी मुद्रा खर्च करनी होगी, जिसका असर देश के राजकोषिय घाटे पर भी देखा जा सकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के समय देश के नीति निर्माताओं को आपदा में अवसर तलाशते हुए ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में तेजी से प्रयास करना चाहिए। हालांकि सरकार पीएलआई स्कीम्स के माध्यम से हरित हाइड्रोजन ऊर्जा उत्पादन और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में प्रोत्साहन दे रही है, जिसके सकारात्मक परिणाम भी देखे जा रहे हैं, लेकिन देश में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के लिए कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर अभी भी चुनौती बना हुआ है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ईंधन कीमतें तेजी से बढ़ीं हैं, क्योंकि रूस पर प्रतिबंध लगने से आपूर्ति बाधित हुई है। भारत अपनी जरूरत के कुल ईंधन का 36 प्रतिशत आयात करता है। जीडीपी में देश के ईंधन आयात की हिस्सेदारी विश्व की अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक है। भारत साल के 12 माह में 1.25 अरब बैरल का शुद्ध तेल आयात करता है। बजट में सरकार ने हाइड्रोजन नीति की घोषणा की है। इसके बाद हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए जरूरी अक्षय विद्युत की खातिर अंतरराज्यीय शुल्क हटा दिया है। जिसके चलते इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, रिलांयस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियां तेजी से हाइड्रोजन उत्पादन को अलमीजामा पहनाने में लगी हुई हैं। यह छूट वर्ष 2025 से पहले स्थापित और 25 वर्षों तक चलने वाली सभी परियोजनाओं पर लागू होगी। अन्य लाभों में निर्यात के वास्ते भंडारण के लिए बंदरगाहों के निकट बंकर स्थापित करने की खातिर हरित हाइड्रोजन की विनिर्माताओं के लिए भूमि भी दी जाएगी। लेकिन वास्तव में गैस और कोयले के इतर एक और वैकल्पिक बाजार बनाने के लिए मांग पैदा करना मुश्किल होगा, क्योंकि हाइड्रोजन ईंधन परंपरागत ईंधन से काफी महंगा होगा। इसके लिए सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर की तरह इसमें भारी निवेश और सब्सिडी की जरूरत पड़ेगी। नवीनतम नीति से हाइड्रोजन उत्पादन की लागत मे मौजूदा औसत 500 रुपए प्रति किलोग्राम में 50 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। लेकिन ईंधन के रूप में हाइड्रोजन को सौर या तेल और गैस जैसे विकल्पों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए इसे 100 प्रति किलोग्राम से कम पर उपलब्ध होना चाहिए। हाइड्रोजन उत्पादन और इसे अपनाने के लिए सरकार को उद्योग और परिवहन क्षेत्रों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके लिए विद्युत मंत्रालय को मांग पैदा करने के लिए अन्य मंत्रालय इस्पात, नौवहन, भारी उद्योग, नागरिक उड्डयन और सड़क परिवहन और राजमार्ग क्षेत्र के साथ मिलकर काम करना चाहिए। भारत 2030 तक करीब 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन पैदा करने की योजना बना रहा है। सौर ऊर्जा की बात करें तो इस पर भी निवेश की जरूरत है। भारत सरकार ने 2022 के अंत तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें पवन ऊर्जा से 60 गीगावाट, सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट, बायोमास ऊर्जा से 10 गीगावाट और लघु जलविद्युत परियोजनाओं से 5 गीगावॉट शामिल है। विगत तीन साल में भारत में सौर ऊर्जा का उत्पादन अपनी स्थापित क्षमता से चार गुना बढ़ कर 10 हजार मेगावाट के आंकड़े को पार कर गया है। सौर ऊर्जा उत्पादन में सर्वाधिक योगदान रूफटॉप सौर उर्जा 40 प्रतिशत और सोलर पार्क 40 प्रतिशत का है। यह देश में बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता का 16 प्रतिशत है। सरकार का लक्ष्य इसे बढ़ाकर स्थापित क्षमता का 60 प्रतिशत करने का है। अगले तीन साल में देश में सौर ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाकर 20 हजार मेगावाट का लक्ष्य है। उच्च उत्पादन लागत, लोगों की जागरुकता का अभाव तथा वर्तमान ऊर्जा को छोडऩे की सीमाएं एवं पारेषण नेटवर्क को देशभर में सौर ऊर्जा क्षमता के भरपूर दोहन की दिशा में मुख्य बाधा के रूप में माना गया है। इसके अलावा आयातित ऊर्जा की खपत घटाने के लिए गाडिय़ों में फ्लेक्स इंजन इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे एक और जहां पैसों की बचत है, वहीं प्रदूषण का स्तर कम होगा। उल्लेखनीय है कि ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में ऑटोमोबाइल कंपनियां फ्लेक्स-फ्यूल इंजन का उत्पादन कर रही हैं जिससे ग्राहकों को 100 फीसदी पेट्रोल या 100 फीसदी बायो-इथेनॉल के इस्तेमाल का विकल्प उपलब्ध कराया जा रहा है। फ्लेक्स-फ्यूल इंजन भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाला भी है, क्योंकि देश में शुगर और गेहूं का पर्याप्त उत्पादन होता है। लेकिन सरकार को रूस-यूक्रेन युद्ध से देश में उपजे डीजल-पेट्रोल और गैस की महंगाई को देखते हुए निकट भविष्य में ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में गंभीरता से विचार करना होगा और इसमें भारी निवेश की तैयारी करते हुए आयातित ऊर्जा में निर्भरता घटाने के लिए प्रयासरत रहना होगा। साथ ही इलेक्ट्रिक व्हीकल्स चाजिंग स्टेशन के लिए देशभर में अभियान चलाना चाहिए और पेट्रोल-डीजल गाडिय़ों की जगह ईवी खरीदने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। यदि हम सही मायने में ऊर्जा को लेकर आत्मनिर्भर हो जाएं तो निश्चित रूप से हमारी अर्थव्यवस्था वैश्विक घटनाक्रम से काफी हद तक अप्रभावित रह सकती है और बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा की बचत की जा सकती है। सरकार आयातित ऊर्जा की जगह यदि वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर गंभीरता से कार्य करे तो वह दिन दूर नहीं जब हम ऊर्जा पर आत्मनिर्भर बनते हुए वैश्विक घटनाओं से प्रभावित हुए बिना विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ सकते हैं। क्योंकि भारत इस समय अर्थव्यवस्था में पेट्रोल-डीजल और पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर आठ लाख करोड़ रुपए खर्च कर रहा है। तेल की कीमतें दिसंबर 2021 के स्तर से अब तक 40 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ चुकी हैं। इससे देश पर करीब 60 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ पडऩा तय है। रूस और यूक्रेन इन जिंसों के आपूर्तिकर्ता भी हैं। मौजूदा मूल्य पर भारत का इन जिंसों का आयात 40 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। इसके अलावा गैस, कोयला, खाद्य तेल तथा उर्वरक जैसे घनीभूत ऊर्जा के अन्य स्वरूपों की कीमत भी बढ़ी है। कुल ईंधन आयात का बोझ 100 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है जो जीडीपी के तीन फीसदी के बराबर है। ईंधन से जुड़ी ज्यादातर चर्चा महंगाई तथा नकदी पर प्रभाव पर आधारित रहती है जबकि उत्पादन पर भी इसका बुरा असर होता है। हमारा मानना है कि ईंधन कीमतें ऊंचे स्तर पर जाने वाली हैं और नए ऊर्जा माध्यमों से प्रतिस्थापन कठिन होगा। सरकार के लिए चिंता की एक बात यह भी है कि अनिश्चिततााओं का दौर कितना लंबा चलेगा। रूस-यूक्रेन युद्ध से आए ईंधन की कीमतों में बदलाव देश को बड़े घाटे की ओर ले जा सकता है। ऐसे में सरकार को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए एक मिशन के रूप में कार्य करना चाहिए और वैकल्पिक ईंधन के उत्पादन तथा उपयोग को बढ़ावा देने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहिए।
बालेन्द्र पाण्डेय