ईडी पर केवल विपक्ष के नेताओं के ही विरुद्ध कार्य करने का आरोप?*
‘‘जैमर’’ का मतलब तो आप समझते ही होंगे। जैमर के क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क न मिलने के कारण वह सेल फोन को उसे क्षेत्र में प्रभावी रूप से अक्षम कर देता है। इसी प्रकार पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) के अंतर्गत ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) के ‘‘हाथ’’ (हथियार) अधिकतर राज नेताओं में विपक्षी दलों के नेताओं की गर्दन तक ही पहुंच पा रहे हैं, अन्य किसी नेताओं के पास नहीं, क्यों? क्योंकि वहां पर एक अवरोधक यंत्र (‘‘ऊपर’’ का आदेश) ‘‘जैमर’’ लगा हुआ है? वैसे ईडी पर इस तरह का आरोप लगाना आपकी नासमझी, बेवकूफी व द्वेष पूर्वक राजनीति से भरी पूर्ण ही कही जा सकती है? क्योंकि ‘‘हंसिया रे तू टेढ़ा काहे? अपने मतलब से’’। ईडी किसी नागरिक पर कोई कार्रवाई तभी करती है, जब उसने प्रथम दृष्टिया पीएमएलए के अंतर्गत कोई गुनाह किया हो। या सिर्फ आपके कहने मात्र से ईडी ‘‘शेर बकरी को एक ही घाट पर दिखाने’’ अर्थात संतुलन स्थापित करने की दृष्टि से, आपके विरोधी निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ झूठी कार्रवाई करें? ‘‘पीएमएलए’’ के अंतर्गत आरोपों को अभियोजन पर दोष सिद्ध करने का भार नहीं होता है, बल्कि स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने का भार ‘‘आरोपी’’ पर हैं। आरोपी इस आधार पर अपने को निर्दोष या उसके विरुद्ध की गई कार्रवाई को गलत नहीं ठहरा सकता है कि, ईडी ने उसके विरोधी तथाकथित अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की है। ईडी का यह एक पक्ष है। परंतु तथ्य इसके विपरीत हैं।
हमारे यहां एक कहावत है। गोबर जहां गिरता है, कुछ न कुछ लेकर उठता ही है। इसीलिए भारी भरकम कैश व संपत्ति मिलने के कारण गुण दोष के आधार पर उन छापों की आलोचना नहीं की जा सकी। अतः ईडी जहां भी छापे मारेगी, निसंदेह वहां कुछ न कुछ अवश्य मिलेगा ही। अलहदा न्यायालयों में अधिकांश प्रकरणों में ईडी सजा नहीं दिला पाई। जब ईडी को विपक्ष के नेताओं के यहां छापा मारने से फुर्सत मिलेगी, तभी तो वह सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के घर जाएगी? इतनी प्राथमिकता तो ‘‘सत्ता’’ की मिलनी ही चाहिए? इस बात को विपक्ष को समझना चाहिए?
*आंकड़े बोलते हैं! ईडी की कार्रवाई एक तरफा है।*
ईडी ने एनडीए के शासन में 5155 केस दर्ज किये व 7264 छापे और तलाशी ली, जबकि 2005 से 2014 के बीच यूपीए सरकार में 1797 प्रकरण तथा केवल 112 तलाशी हुई। ईडी ने विपक्ष के जिन राजनेताओं के विरुद्ध छापेमारी, उनमें से कितने नेता भाजपा मे शामिल हो गए? तत्पश्चात ईडी द्वारा उन पर क्या कार्रवाई हुई? इस पर ईडी को अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए एक श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार विपक्ष के 25 बड़े नेता नेताओं जिनके विरुद्ध सीबीआई या ईडी की कार्रवाई चल रही थी, के भाजपा में शामिल होने के बाद तीन मामलों में खात्मा लगा दिया गया व 20 मामलों में कार्रवाई शिथिल हो गई। 2014 से 2022 के बीच 121 बड़े राजनेताओं की जांच ईडी कर रही है, जिनमें से 115 नेता अर्थात 95ः विपक्षी पार्टियों के हैं। ठाणे के शिवसेना विधायक प्रताप खलनायक के विरुद्ध मनी लांड्रिंग का मामला ईडी के दर्ज करने के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखकर भाजपा से संबंध सुधार कर सरकार बनाने की सलाह तक दे डाली।
*ईडी की सफलता का ‘‘ट्रैक रिकॉर्ड’’?*
ईडी पर एक पक्षीय होकर ‘‘टारगेट कर पक्षपात पूर्ण’’ कार्रवाई करने का आरोप लगाए जाने के बाद ईडी ने आंकड़े जारी कर उन आरोपों को नकारते हुए अपनी स्थिति स्पष्ट की है। 31 जनवरी तक 513 लोगों को गिरफ्तार किया है वहीं, 1.15 लाख करोड़ रुपए से अधिक की सपत्ति कुर्क की है। ईडी का साफ कहना है कि वह अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई करती है,‘‘निरापराधियों’’ के विरुद्ध नहीं, जो 96% सजा मिलने के रिकॉर्ड से सिद्ध भी होता है। राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआईए) एवं सीबीआई का सजा का प्रतिशत क्रमशः 94 एवं 68ः है। राजनेताओं (पूर्व व वर्तमान जनप्रतिनिधियों) के विरुद्ध केवल 3% मामले हैं और 9% मामलों में ही तलाशी वारंट जारी किए गए हैं। ईडी का यह कथन है की जनवरी 2023 तक 25 में से 24 मामलों में 45 आरोपियों को सजा हुई, वहीं 1142 मामलों में चार्ज शीट होकर ट्रायल चल रहे हैं। हालांकि ईडी का यह दावा भ्रामक होकर गलत है। एक जुलाई 2005 से ईडी को पीएमएलए 2002 लागू करने का अधिकार मिलने के बाद से 31 जनवरी 2023 तक 5906 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें से 1142 अर्थात मात्र 19 फीसदी मामलों में ही चार्जशीट प्रस्तुत की गई है। लोकसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार वर्ष 2014 से 2024 के बीच धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (पीएमएलए) के तहत 5297 मामले दर्ज किए गए, जबकि मात्र 46 मामलों एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 63 मामलों में ही दोष सिद्धि हो पाई। जबकि यूपीए के कार्यकाल में एक भी सजा नहीं हुई। इस प्रकार दर्ज मामलों से सजा होने तक दोष सिद्धि का प्रतिशत मात्र 1.18% होता है, न की 96%। ये तो ‘‘पंसेरी में पांच सेर की चूक हुई’’! स्वयं उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ के सुनील कुमार अग्रवाल के मामले में सुनवाई के दौरान यह कहा कि ईडी को सजा की दर को बढ़ाने के लिए कुछ ‘‘वैज्ञानिक जांच’’ की जानी चाहिए।
*‘‘पीएमएलए’’ में जमानत के कड़े नियम!*
ईडी द्वारा मामला दर्ज होते ही आरोपियों की गिरफ्तारी हो जाती है। पीएमएलए के कानून कड़े होने के कारण महीनो-सालों जमानत नहीं मिलने से अनावश्यक रूप से जेल में रहना पड़ता है, क्योंकि चार्ज शीट ही लंबे समय तक प्रस्तुत नहीं होती है। इस संबंध में मुंबई के विशेष सत्र न्यायाधीश का संजय राउत को जमानत देने के आदेश में कहां गया यह कथन अत्यंत महत्वपूर्ण है, ‘‘ईडी जिस असाधारण गति से अभियुक्तों को गिरफ्तार करता है, वह परीक्षण करने में कछुए की गति से भी कम है।’’ कई बार सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘‘जमानत को सजा के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है’’, लंबे समय तक आरोपी को जेल में रखना संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है। ‘‘जमानत एक अधिकार है और इनकार अपवाद’’ सर्वोच्च न्यायालय के इस प्रतिपादित सिद्धांत के बावजूद पीएमएलए में जमानत मुश्किल से ही मिल पाती है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि ईडी ‘‘अंधेरखाता खोल कर बैठ जाये’’।
*ईडी पर विभिन्न मामलों में न्यायालयों द्वारा की गई गंभीर टिप्पणियां।*
ईडी द्वारा पीएमएलए के अंतर्गत दायर किए गए कुछ महत्वपूर्ण प्रकरणों में विभिन्न माननीय न्यायालयों द्वारा की गई टिप्पणियों को देख ले तो आपको स्पष्ट रूप से यह समझ में आ जाएगा कि ईडी किस तरह से ‘‘हवाबाजी’’ व ‘‘दिशा निर्देश’’ में कार्य करती है।
शिवसेना के सांसद व मुख पत्र ‘‘सामना’’ के संपादक संजय राउत के प्रकरण में पीएमएलए न्यायालय के विशेष न्यायाधीश ने स्पष्ट रूप से यह कहा कि यह मामला पीएमएलए कानून के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आता ही नहीं है, दीवानी मामला है। ईडी को जमकर फटकार लगाते हुए संजय राउत की गिरफ्तारी कों अवैध व शिकार बनाने का कृत्य दिया। इसे ‘‘विच हंट’’ भी कहा। आप इसे ‘‘हड़बड़ी ब्याह कनपटी सिंदूर’’ भी कह सकते हैं। ‘‘यस बैंक’’ के संस्थापक राणा कपूर को जमानत देते हुए इन्हीं माननीय न्यायाधीश ने कहा कि पीएमएलए के अंतर्गत गठित विशेष अदालत की स्थापना के बाद से आज तक एक भी मनी लॉन्ड्रिंग मामले का फैसला नहीं हो सका है। ‘‘ईडी ने लंबित मामले की सुनवाई शुरू करने के लिए कोई सक्रिय रूख नहीं दिखाया है’’।
दूसरा मामला ‘‘आप’’ सांसद संजय सिंह का है, जहां ईडी द्वारा आधिकारिक रूप से जमानत का विरोध न किए जाने पर उच्चतम न्यायालय ने जमानत दी। ईडी ने जमानत का विरोध इसलिए नहीं किया कि जब न्यायालय ने ईडी से यह पूछा कि 6 महीनों से बंद संजय सिंह को अब जेल में रखने की जरूरत क्यों है? यह समझ से परे है? तब न्यायालय द्वारा गुण दोष पर आदेश पारित करने के लिए पूर्व ही ईडी ने हरी झंडी दे दी स यानी ‘‘सवाब न अजाब कमर टूटी मुफ्त में’’।
तीसरा मामला अनिल देशमुख महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री का है। उच्च न्यायालय के समक्ष लंबे समय से लंबित जमानत याचिका पर उच्चतम न्यायालय की रताड़ के बाद उच्च न्यायालय ने शीघ्र सुनवाई कर अनिल देशमुख को इस आधार पर जमानत दी की दो गवाहों के बयान जिनके आधार पर प्रकरण दर्ज किया गया वे बयान प्रथम दृष्टिया सुनी सुनाई बातों (हियरसे) पर आधारित थे। चौथा मामला झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का है, जब उच्च न्यायालय ने हेमंत सोरेन के खिलाफ पीएमएलए एक्ट के अंतर्गत प्रथम दृष्टिया कोई साक्ष्य न पाए जाने के कारण उनका जमानत आवेदन स्वीकार किया गया स ताजा मामला दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का 17 महीने बाद जमानत पर जेल से छोड़ा गया स मतलब यह कि ‘‘शैतान जान न मारे, हैरान तो जरूर करे’’। सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट व ट्रायल कोर्ट को यह समझाइश दी की अदालतें यह समझें की जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद। सजा के तौर पर जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता है। राइट टू स्पीडी ट्रायल (त्वरित सुनवाई का अधिकार) को अनदेखा किया गया। ईडी की कार्यप्रणाली की तथाकथित गंभीरता? का एक उदाहरण और देखिए! ईडी ने देश से भाग गए भगोड़ों की गिरफ्तारी के लिए वर्ष 2015 से लेकर अभी तक कुल 19 रेड कॉर्नर नोटिस जारी किए हैं, जिनमें से एक भी अपराधी का प्रत्यारोपण अभी तक नहीं हो पाया है।
राजीव खंडेलवाल (लेखक, कर सलाहकार एवं पूर्व बैतूल सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)