बालेन्द्र पाण्डेय
वरिष्ठ पत्रकार  

अक्सर देश में धर्म निरपेक्षता को लेकर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। लेकिन जब बात आचरण और व्यवहार में धर्म निरेपक्ष भाव उतारने की आती है तो हम देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली नारी जाति के साथ धर्म की आड़ में ही अत्याचार करने, यातना देने और नीचा दिखाने में पीछे नहीं हटते। किस धर्म के पर्सनल लॉ में महिलाओं को आजादी मिली हुई है और कहां उनका शोषण हो रहा है, मायने यह नहीं रखता, बल्कि मायने यह रखता है कि क्यों न सरकारें धार्मिक बंधन की इतश्री करते हुए ऐसा कानून लाएं जिसमें महिलाओं को एक समान अधिकार मिले। फिर चाहे वह घूंघट में रहने वाली गृह लक्ष्मी हो या हिजाब वाली बेगम। गौरतलब है कि देश में समय-समय पर समान नागरिक संहिता यूनिफॉर्म सिविल कोड, यूसीसी की मांग उठती रही है। वास्तव में समान नागरिक संहिता विविधितापूर्ण देश भारत की धर्म निरपेक्ष छवि को नई धार देगा, बल्कि नारी को नारायणी का दर्जा दिलाने के साथ उनकी दशा बदलने में महती भूमिका निभाएगा। वैसे तो समान नागरिक संहिता के कई लाभ हैं, लेकिन यह महिलाओं की वर्तमान दशा और दिशा बदलने में रामबाण साबित होगी। यूसीसी महिलाओं को धार्मिक कुरीतियां, प्रथाओं और रूढ़ीवादी आडंबरों, खोखले विचारों को तोड़कर खुलकर सम्मान के साथ जीवन जीने के लिए प्रेरित करेगा। यह खासकर अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए वरदान साबित होगा। अब जब देश में समाज के एक वर्ग की लड़कियां ड्रेस कोड का पालन न करते हुए हिजाब पहनकर शिक्षा स्थल पर जाने की मांग कर रही थीं। इतना ही नहीं इस मामले में उच्च न्यायालय द्वारा ड्रेस कोड का पालन करने के आदेश के बाद भी कुछ कट्टरपंथी यह कहते सुने गए कि न्यायालय में पर्सनल लॉ की विवेचना ठीक ढंग से नहीं की गई। इस घटना से निश्चित रूप से धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर शिक्षा ग्रहण करने की उम्र में ही कट्टरता का खतरा बढ़ेगा, जोकि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष मुल्क के लिए हितकर नहीं है। ऐसे में क्यों न समान नागरिक संहिता लागू कर घूंघट और हिजाब के बीच की धार्मिक खाई को पाट दिया जाय। वास्तव में समान नागरिक संहिता अब देश में समय की मांग और जरूरत है। ताकि भारत में नारी चाहे घुंघट में रहे या हिजाब में दोनों के लिए जीवन जीने के नियम समान हों। गौरतलब है कि समय-समय पर न्यायालय भी समान नागरिक संहिता की जरूरत का समर्थन कर चुकी है। सात जनवरी 2022 को सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को हलफनामा में बताया था कि समान नागरिक संहिता का मामला लॉ कमीशन के पास लंबित है। लॉ कमीशन इस पर गहराई से विचार कर रहा है। इतना ही नहीं संविधान निर्माताओं को भी यह उम्मीद थी कि एक दिन देश में समान नागरिक संहिता लागू होगी। इसीलिए संविधान के मसौदे में अनुच्छेद 35 को संविधान के आर्टिकल 44 के रूप में शामिल किया गया था और उम्मीद की गई थी कि जब राष्ट्र एकमत हो तो समान नागरिक संहिता लागू होगी। अनुच्छेद 44 राज्य को उचित समय आने पर सभी धर्मों लिए समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश देता है। अनुच्छेद 44 का मकसद भेदभाव की समस्या को खत्म करना है। वास्तव में राम राज्य की परिकल्पना तभी साकार होगी जब देश में समान नागरिक संहिता लागू हो। क्योंकि भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम ही नहीं थे, बल्कि उनका संपूर्ण जीवन चरित्र भेदभाव विहिन समाज के निर्माण को इंगित करता है। फिर चाहे सबरी के जूठे बेर खाने का वित्तृांत हो, विभिषण को भाई का दर्जा देना हो, निशादराज से दोस्त या अहिल्या को श्राप से मुक्ति। यहां भगवान राम का जिक्र करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि उनसे पहले भी महिलाओं का जीवन अत्यंत कठिन और चुनौतीपूर्ण था। राजा के साथ प्रजा को बहुपत्नी रखने का अधिकार था। लेकिन भगवान राम ने बहु-पत्नीवाद की इस प्रथा को एक बुराई के तौर पर लिया और माता सीता के रूप में एक पत्नी का व्रत धारण कर महिलाओं को समाज में पुरुषों के बराबर अधिकार दिया। साथ ही बताया कि नारी का अपमान स्वर्ण से बनी लंका का भी सर्वनाश कर सकता है। राजा राम के पदचिन्हों पर प्रजा भी चली और राम के चरित्र को जीवन में उतारने का प्रयास किया। भगवान श्रीराम की तरह समान नागरिक संहिता भी नारी हितैषी है और संपूर्ण देश की महिलाओं को जाति, धर्म और समुदाय से ऊपर उठाकर एक समान अधिकार देती हैं। यह कानून महिलाओं को आर्थिक, समाजिक रूप से सशक्त बनाएगा, जिससे वे राष्ट्र निर्माण में पुरुषों के बराबर योगदान दे सकेंगी। साथ ही कोई भी धर्म की आड़ लेकर उनका शोषण नहीं कर सकेगा। ऐसे में वास्तविक राम राज की परिकल्पना को मूर्त रूप देने की दिशा में देश आगे बढ़ेगा। सरल शब्दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब भारत देश में सभी धर्मों, वर्गों और समुदाय के लिए एक समान कानून लागू करना है। इससे पूरे देश में हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई में विवाह, तलाक, जायदाद के बंटवारे और गोद लेने जैसे सामाजिक मुद्दों पर एक समान कानून के तहत आएंगे। अब तक धर्म के आधार होने वाले निर्णय पर्सनल लॉ यानी मुश्लिम लॉ, हिंदू लॉ, पारसी लॉ के तहत न होकर एक धर्मनिरपेक्ष कानून से होंगे और जो सभी धर्म के लिए एक समान होगा। अभी विशेष वर्ग य सम्प्रदाय में एक से अधिक पत्नी रखने का अधिकार पर्सनल लॉ द्वारा दिया जाता है, इससे कहीं न कहीं लैंगिक पक्षपात की समस्या पनपती है और इस पक्षपात का सारा दर्द औरत को झेलना पड़ता है। जबकि पुरुष धार्मिक कानून का सहारा लेकर दूसरा विवाह कर खुशहाल जीवन व्यतीत करता है। समान नागरिक संहिता से तलाक और विवाह विच्छेदन जैसे मामलों में एक समान नियम लागू होंगे। इसमें पहली पत्नी के होते यदि पति दूसरी शादी करता है तो बगैर कानूनी तलाक हुए वह विवाह शून्य माना जाएगा और यदि किसी कारणवश तलाक जरूरी है तो पहली पत्नी को भरण पोषण से लेकर संपत्ति पर हक बरकरार रहेगा। निश्चित रूप से समान नागरिक संहिता से एक ओर जहां दांपत्य जीवन खुशहाल होगा, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक विवाद के मामले कम होंगे, जिससे न्यायालय पर बोझ भी घटेगा और महिला प्रधान समाज के निर्माण में मदद मिल सकेगी। क्योंकि वर्तमान पुरुष प्रधान समाज में देखें तो यथार्थ यह है कि धार्मिक मान्यताओं की चक्की में सिर्फ महिलाएं पिसती हैं। बगैर समानता के कानून के नारी सशक्तिकरण की बात सिर्फ भाषणों और कागजों में अच्छी लगती है, यथार्थ में महिलाओं को कार्यस्थल हो या घर, हर जगह भेदभाव ना केवल सहना पड़ता, बिल्क अपनी खुशियों और भविष्य को लेकर समझौते भी करने पड़ते हैं। वास्तव में समान नागरिक संहिता का उद्देश्य ही महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्ग को सामाजिक सुरक्षा देना है। आज भी समाज का एक वर्ग नारी को भोग की वस्तु समझता है। लोगों की यह धारणा धरातल पर तभी खत्म हो सकती है, जब महिलाओं को एक समान कानून के दायरे में लाया जाए। समान नागरिक संंहिता वास्तव में नारी को लेकर समाज की धारणा में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है। इसके लागू होने से अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाएं कानून के सहारे खुद का उत्थान कर सकेंगी और परिवार रूपी संस्था को विघटन से बचा सकेंगी। इस कानून से महिलाओं को लेकर लोगों की धारणा बदलेगी और समाज में ना केवल महिलाओं का शोषण रुकेगा, बल्कि वे आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर व स्वावलंबी बनकर खुद के साथ परिवार, समाज और नव भारत निर्माण में योगदान दे सकेंगी। भारतीय संस्कृति में नारी तू नारायणी नमस्तुते की परिकल्पना हकीकत में तभी सार्थक होगी जब सभी धर्मों के लिए एक समान नागरिक कानून हो। देश के विद्वान वर्ग का भी यही कहना है कि देश में लैंगिक समानता समान नागरिक संहिता लागू कर लाई जा सकती है। समान नागरिक संहिता उन परंपराओं को खत्म करेगा जो महिलाओं के लिए अपमानजनक, असभ्य व अशिष्ट हैं। वास्तव में पर्सनल लॉ के चलते महिलाओं की हालत में सुधार नहीं हो पा रहा है। समान नागरिक संहिता उन महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करेगी जो बहुविवाह  जैसी प्रथाओं का विरोध करती रहीं हैं। यूसीसी समाज सुधारक है। इतिहास गवाह है कि राजा राममोहन राय ने ना केवल सती प्रथा के खिलाफ  आवाज उठाई, बल्कि जन समर्थन के लिए आंदोलन किया और इस धार्मिक कुरीति को खत्म भी किया। उसी तरह यदि सरकारें चाहें तो एक समान नागरिक संहिता लाकर समाज में महिला सशक्तिकरण की नई अलख जगा सकती हैं। बस जरूरत है तो गंभीर प्रयास की।